भारत में सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति और प्रकृति की सुंदरता से भरा होता है। यह समय वर्षा ऋतु का होता है, जब हरियाली चारों ओर छा जाती है और वातावरण पवित्रता से भर जाता है। इस पावन अवसर पर महिलाएं व्रत, पूजा और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेती हैं, और इस दौरान हरे रंग के वस्त्र पहनने की विशेष परंपरा है। क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर महिलाएं सावन में हरा रंग ही क्यों पहनती हैं? इसके पीछे कई धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक कारण छिपे हैं।
हरा रंग: सौंदर्य और सौभाग्य का प्रतीक
भारतीय संस्कृति में हरा रंग सौंदर्य, सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। विवाहित महिलाएं सावन के सोमवार को विशेष पूजा और व्रत करती हैं, और इस दौरान हरा रंग पहनना उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। यह रंग उनके वैवाहिक जीवन की सुख-शांति और पति की लंबी उम्र की कामना का प्रतीक बन जाता है।
हरियाली और प्रकृति से जुड़ाव
सावन का महीना वर्षा ऋतु में आता है, जब पेड़-पौधे हरे-भरे हो जाते हैं। यह हरा रंग प्रकृति की समृद्धि और जीवन शक्ति का प्रतीक है। महिलाएं इस हरियाली का स्वागत अपने वस्त्रों और श्रृंगार में हरा रंग शामिल कर के करती हैं, जिससे उनका जुड़ाव प्रकृति से और भी प्रगाढ़ हो जाता है।
हरे रंग की चूड़ियां और बिंदी: श्रृंगार का अहम हिस्सा
भारतीय परंपरा में चूड़ियां और बिंदी केवल सजावटी नहीं, बल्कि शुभता का भी प्रतीक हैं। सावन में महिलाएं हरे रंग की चूड़ियां पहनती हैं और हरी बिंदी लगाती हैं, जो उनके पति की लंबी उम्र और सुखद दांपत्य जीवन की प्रतीक होती हैं। यह श्रृंगार ‘सौभाग्यवती’ स्त्री की पहचान भी है।
मन और मस्तिष्क को शांत रखने वाला रंग
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो हरा रंग आंखों को सुकून देता है और मानसिक तनाव को कम करता है। सावन में जब व्रत और उपवास किए जाते हैं, तो शरीर पर इसका असर पड़ता है। ऐसे में हरे रंग का मानसिक प्रभाव महिलाओं को संतुलित बनाए रखने में मदद करता है।
धार्मिक आस्था और परंपरा का पालन
सावन में शिव और पार्वती की पूजा का विशेष महत्व होता है। देवी पार्वती का स्वरूप भी हरियाली से जुड़ा हुआ है। ऐसी मान्यता है कि इस महीने में हरा रंग धारण करने से देवी पार्वती प्रसन्न होती हैं और महिलाओं को अखंड सौभाग्य का वरदान देती हैं। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है।
हरे रंग के मेहंदी की भूमिका
सावन में महिलाएं हाथों में हरे रंग की मेहंदी लगाना भी नहीं भूलतीं। यह सिर्फ सजावट नहीं, बल्कि पवित्रता और उत्सव का भी प्रतीक है। मेहंदी की खुशबू और उसका रंग महिलाओं को खुश करने का काम करता है, जो मन को प्रफुल्लित रखता है।
विवाहित और अविवाहित दोनों के लिए शुभ रंग
हालांकि यह मान्यता अधिकतर विवाहित महिलाओं में प्रचलित है, लेकिन अविवाहित कन्याएं भी इस महीने में शिव की पूजा करती हैं और अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। हरा रंग उनके लिए भी शुभ माना जाता है, क्योंकि यह सौभाग्य की प्राप्ति और नवजीवन की शुरुआत का प्रतीक है।
सावन में हरा रंग पहनने की परंपरा केवल एक चलन नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, श्रद्धा और प्रकृति से जुड़े गहरे भावों का प्रतीक है। यह रंग नारी के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, प्रेम, विश्वास और शुभता लेकर आता है। सावन के इस पावन महीने में जब महिलाएं हरे वस्त्रों में सजी होती हैं, तो वह केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि संस्कृति की जीवंत झलक भी होती हैं।