Guru Purnima 2024: कल है गुरु पूर्णिमा, जानें क्यों मनाया जाता है यह त्योहार और क्या है इसका महत्व

Editorial Team
5 Min Read

आषाढ़ माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। परंपरागत रूप से यह दिन गुरु पूजा या गुरु आराधना के लिए होता है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं की पूजा करते हैं या उन्हें सम्मान देते हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान सर्वोपरि है। ‘गुरु‘ शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है- “अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले ।” गुरु ही वह व्यक्ति है जो हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते है। गुरु के बारे में उल्लेख करते हुए शास्त्रों में कहा गया है-

अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

अर्थात् गुरु ही हमें ज्ञान या परमार्थ की जागरूकता का मरहम लगाकर अज्ञानता के अंधकार की पीड़ा से बचा सकते है, हम ऐसे गुरु को प्रणाम करते हैं।

गुरु पूर्णिमा तिथि और शुभ मुहूर्त

साल 2024 में गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई 2024 को मनाई जाएगी। पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 20 जुलाई को शाम 5 बजकर 59 मिनट से होगी, जिसका समापन 21 जुलाई को दोपहर 03 बजकर 46 मिनट होगा। सनातन धर्म में उदया तिथि का अधिक महत्व है। ऐसे में गुरु पूर्णिमा का पर्व 21 जुलाई को मनाया जाएगा।

गुरु पूर्णिमा का महत्व

गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है और इस दिन को वेद व्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। वेद व्यास हिंदू महाकाव्य महाभारत के लेखक होने के साथ-साथ एक पात्र भी थे। आदि शंकराचार्य, श्री रामानुज आचार्य और श्री माधवाचार्य हिंदू धर्म के कुछ उल्लेखनीय गुरु हैं।

हिन्दू धर्म के अतिरिक्त बौद्ध धर्म में भी इस दिन का विशेष महत्व है क्योंकि इसी दिन गौतम बुद्ध ने सारनाथ में अपने पांच शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था, जिसे ‘धर्म चक्र प्रवर्तन‘ के नाम से जाना जाता है। जैन धर्म में भी इस दिन को महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस दिन ही भगवान महावीर ने अपने प्रथम शिष्य गौतम गणधर को दीक्षा दी थी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक जगत गुरु भगवान शिव ने इसी दिन से सप्तऋषियों को योग सिखाना शुरू किया था।

आधुनिक दौर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने अध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचंद्र को श्रद्धांजलि देने के लिए भी गुरु पूर्णिमा का दिन ही चुना था।

गुरु पूर्णिमा का त्योहार भारत ही नहीं बल्कि नेपाल और भूटान में भी बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।

नेपाल में गुरु पूर्णिमा को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जाता है, हालांकि भारत में शिक्षक दिवस गुरु पूर्णिमा के दिन नहीं बल्कि प्रत्येक वर्ष पांच सितंबर को मनाया जाता है।

गुरु पूर्णिमा का पर्व हमें यह याद दिलाता है कि ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया में गुरु का स्थान कितना महत्वपूर्ण है। यह दिन हमें अपने गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करने और उनके सिखाए गए मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करते हुए उपनिषदों में कहा गया है-

ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥
ॐ शांति, शांति, शांतिः

अर्थात् परमेश्वर हम शिष्य और गुरु दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें। शांति शांति शांति।

गुरु पूर्णिमा का पर्व न केवल हमारे गुरुओं के प्रति आदर और सम्मान का प्रतीक है, बल्कि यह हमें ज्ञान और सच्चाई की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा भी देता है। इस दिन का महत्व सदियों से बना हुआ है और यह हमें हमारी संस्कृति, परंपरा, और मूल्यों की याद दिलाता है।

गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाकर हम अपने जीवन में गुरुओं के योगदान को सम्मानित करते हैं और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि सही मार्गदर्शन और ज्ञान से हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।

Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *