रूप चौदस, जिसे नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह दीपावली पर्व के ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है, और इसका धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। वर्ष 2024 में रूप चौदस 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन अभ्यंग स्नान (तेल से मालिश करके स्नान करना) का विशेष महत्व है। माना जाता है कि यह स्नान शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक होता है।
रूप चौदस का महत्व
रूप चौदस का त्योहार मुख्य रूप से भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर राक्षस के वध की याद में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, नरकासुर नामक असुर ने देवताओं और निर्दोष मनुष्यों को कष्ट देना शुरू कर दिया था। अंततः भगवान श्रीकृष्ण ने उसका वध करके सभी को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। नरकासुर के वध की घटना को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में देखा जाता है। इस दिन को “नरक चतुर्दशी” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह नरकासुर के वध के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, और इसके साथ ही यह संदेश दिया जाता है कि व्यक्ति को अपने भीतर की नकारात्मकताओं को समाप्त करना चाहिए।
अभ्यंग स्नान का महत्व
रूप चौदस पर अभ्यंग स्नान का विशेष महत्व है। अभ्यंग स्नान का तात्पर्य होता है पूरे शरीर पर तेल लगाकर, फिर उबटन (मुल्तानी मिट्टी, बेसन आदि) का उपयोग करके स्नान करना। यह केवल शारीरिक स्वच्छता तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसे मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का साधन भी माना जाता है। अभ्यंग स्नान का मुख्य उद्देश्य शरीर से आलस्य, थकान और नकारात्मक ऊर्जाओं को समाप्त करना होता है, ताकि व्यक्ति नए ऊर्जा के साथ दीपावली का पर्व मना सके।
अभ्यंग स्नान के लाभ:
- शारीरिक शुद्धि: शरीर की गहराई से सफाई होती है, जिससे त्वचा में चमक आती है।
- तनाव मुक्ति: यह स्नान तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है।
- ऊर्जा का संचार: स्नान के बाद व्यक्ति को ताजगी और नई ऊर्जा का अनुभव होता है।
- रोगों से सुरक्षा: अभ्यंग स्नान के दौरान शरीर से विषैले तत्व निकल जाते हैं, जिससे व्यक्ति स्वस्थ रहता है।
- आध्यात्मिक शुद्धि: इसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह आंतरिक और बाह्य शुद्धि का प्रतीक है।
क्यों मनाई जाती है रूप चौदस?
रूप चौदस के दिन विशेष रूप से यह विश्वास किया जाता है कि इस दिन अभ्यंग स्नान करने से व्यक्ति के रूप में सुधार आता है। यह पर्व न केवल शरीर की बाहरी सुंदरता पर जोर देता है, बल्कि आत्मा की आंतरिक शुद्धि का भी प्रतीक है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि असली सुंदरता केवल बाहरी सजावट में नहीं, बल्कि व्यक्ति के विचारों, कर्मों और आत्मा की शुद्धता में निहित है।
इसके अलावा, इस दिन सुंदरता और रूप के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है, जो स्वास्थ्य और आयुर्वेद के जनक माने जाते हैं। इसलिए इस दिन स्वस्थ शरीर और सुंदर रूप की प्राप्ति के लिए विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
रूप चौदस की पूजा विधि
- अभ्यंग स्नान: सूर्योदय से पहले अभ्यंग स्नान करना शुभ माना जाता है। तेल से मालिश करके शरीर की सफाई की जाती है और उबटन का प्रयोग करके स्नान किया जाता है।
- दीपदान: स्नान के बाद घर के बाहर दीप जलाया जाता है, जिसे नरक चतुर्दशी पर विशेष रूप से ‘यम दीप’ के रूप में जाना जाता है। इसका उद्देश्य यमराज से परिवार के सदस्यों की रक्षा और स्वास्थ्य की कामना करना होता है।
- पूजा और आरती: इस दिन लक्ष्मी और गणेश भगवान की पूजा भी की जाती है, ताकि सुख, समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त हो।
रूप चौदस केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमें यह याद दिलाती है कि शारीरिक और मानसिक स्वच्छता का हमारे जीवन में कितना महत्व है। यह त्योहार न केवल बाहरी रूप से सुंदर बनने का प्रयास है, बल्कि आंतरिक रूप से भी पवित्र और सकारात्मक बनने का संदेश देता है। अभ्यंग स्नान और इस दिन की पूजा-अर्चना से व्यक्ति अपने जीवन में नए सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। इस प्रकार, रूप चौदस का त्योहार हर साल हमें यह सिखाता है कि असली सुंदरता, शरीर और आत्मा की शुद्धि से आती है।