हिंदू पंचांग में एकादशी व्रत को अत्यंत शुभ और पुण्यदायक माना गया है। हर माह की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी का अपना एक विशेष महत्व होता है। इन्हीं में से एक है योगिनी एकादशी, जो आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आती है। यह एकादशी विशेष रूप से पापों से मुक्ति, रोगों से छुटकारा और मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए जानी जाती है।
इस वर्ष योगिनी एकादशी 21 जून 2025, शनिवार को मनाई जाएगी। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु और विशेष रूप से उनके रूप श्रीहरि नारायण की आराधना की जाती है।
योगिनी एकादशी का पौराणिक और धार्मिक महत्व
योगिनी एकादशी का वर्णन पद्म पुराण में मिलता है। यह व्रत सभी एकादशियों में से सर्वश्रेष्ठ माना गया है क्योंकि यह 84 लाख योनियों में भटकने से मुक्ति दिलाता है। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति न केवल अपने पापों से मुक्त होता है, बल्कि अगले जन्म में भी उसे उत्तम जीवन प्राप्त होता है।
एक कथा के अनुसार, अलकापुरी में कुबेर नामक राजा के पास हेममाली नामक एक माली था। वह रोज भगवान शिव को फूल चढ़ाने के लिए पुष्प लाता था, लेकिन एक दिन वह अपने कर्तव्य से चूक गया और पत्नी के मोह में पड़कर पूजा में देर कर दी। इस अपराध से क्रोधित होकर कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का श्राप दिया। हेममाली कई वर्षों तक कष्ट भोगता रहा। अंत में, मुनि मार्कण्डेय की शरण में जाने पर उन्हें योगिनी एकादशी व्रत की विधि बताई गई, जिसे करने से वह न केवल कोढ़ से मुक्त हुआ बल्कि पुनः सुंदर, बलवान और धनवान भी बना।
यह कथा हमें यह सिखाती है कि कर्तव्य से विमुख होकर हम पाप अर्जित करते हैं, और आत्मशुद्धि के लिए व्रत जैसे मार्ग ही मोक्ष का द्वार खोलते हैं।
व्रत और पूजा विधि
योगिनी एकादशी के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है। घर को शुद्ध कर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाकर उन्हें पीले पुष्प, तुलसी दल, पंचामृत, फल, मिष्ठान्न आदि अर्पित किए जाते हैं।
पूजा के दौरान ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप किया जाता है और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यंत फलदायक माना जाता है। रात्रि में जागरण कर भजन-कीर्तन करना इस दिन की विशेष परंपरा मानी जाती है।
व्रती को इस दिन अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। केवल फल, दूध या निर्जल व्रत करना उत्तम होता है। अगले दिन द्वादशी को गरीबों को दान देकर व्रत का पारण किया जाता है।
योगिनी एकादशी का आध्यात्मिक दृष्टिकोण
यह एकादशी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आत्म-नियंत्रण, शरीर की शुद्धि और मानसिक स्थिरता की साधना भी है। हमारे कर्म, विचार और भावनाएँ जब शुद्ध होती हैं, तभी हमारा जीवन सच्चे अर्थों में सफल होता है। योगिनी एकादशी हमें हमारे आंतरिक दोषों, आलस्य, मोह, क्रोध और भ्रम से लड़ने की शक्ति देती है।
व्रत करने से शरीर भी डिटॉक्स होता है और मानसिक रूप से हम स्वयं से जुड़ते हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी यह स्वीकार करता है कि उपवास शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और आत्मा की चेतना को जागृत करता है।
कौन लोग करें योगिनी एकादशी व्रत?
इस व्रत को कोई भी स्त्री, पुरुष या बुजुर्ग कर सकता है। विशेष रूप से वे लोग जो रोगों से पीड़ित हैं, जो मानसिक तनाव या अपराध-बोध से गुजर रहे हैं, उन्हें इस व्रत से विशेष लाभ होता है। विवाह योग्य कन्याओं, संतान सुख की कामना करने वालों और गृहस्थ जीवन में शांति चाहने वालों के लिए भी यह व्रत लाभकारी माना गया है।
योगिनी एकादशी केवल उपवास का दिन नहीं है, यह आत्मा की शुद्धि, संयम और प्रभु भक्ति का दिन है। यह व्रत हमें हमारे आंतरिक दोषों से उबार कर एक नया जीवन देता है। जो व्यक्ति श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत को करता है, वह केवल वर्तमान ही नहीं, अपने भविष्य को भी सुखमय बना सकता है।
यह एकादशी हमें याद दिलाती है कि सच्ची भक्ति वही है जो मन, वचन और कर्म से शुद्ध हो। योगिनी एकादशी हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और प्रभु विष्णु की कृपा लाती है, जो हर संकट को हर सकती है।
योगिनी एकादशी 2025 तिथि एवं मुहूर्त:
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तिथि प्रारंभ: 20 जून 2025, शुक्रवार दोपहर 01:45 बजे
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तिथि समाप्त: 21 जून 2025, शनिवार दोपहर 11:35 बजे
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व्रत तिथि: 21 जून 2025 (शनिवार)
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पारण का समय: 22 जून 2025 को प्रातः 05:20 बजे से पूर्वाह्न 08:45 बजे तक