गुरु पूर्णिमा 2025 इस वर्ष 10 जुलाई, गुरुवार को मनाई जा रही है। यह दिन आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर आता है । इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन महान महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, जिन्होंने वेदों का संकलन, महाभारत और अठारह पुराणों की रचना की ।
इस दिन शिष्य अपने आध्यात्मिक, वैदिक, शैक्षणिक और पारिवारिक गुरुओं की पूजा करते हैं, उन्हें श्रद्धा-अर्पण करते हैं और उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं । यदि कोई व्यक्ति गुरु से दूर रहता है, तो वह शुभ वचन, कोट्स या संदेश भेजकर भी आभार व्यक्त कर सकता है ।
शुभ मुहूर्त और स्नान-दान समय
वेदव्यास पूर्णिमा तिथि की शुरुआत बुधवार, 10 जुलाई की रात्रि 1:36 बजे से है और यह 11 जुलाई की सुबह 2:06 बजे तक रहेगी ।
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स्नान-दान मुहूर्त: सुबह 4:10 बजे से 4:50 बजे तक
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गुरुपूजन मुहूर्त: सुबह 10:43 बजे से दोपहर 2:10 बजे तक है ।
उक्त समय में स्नान, गुरु-पूजन और दान करने से आध्यात्मिक उन्नति और शुभ फल प्राप्त होते हैं।
पूजा विधि और अनुष्ठान
गुरु पूर्णिमा पर दिन की शुरुआत ब्राह्म मुहर्त-स्नान से होती है। स्नान के बाद गृहस्थ या मंदिर में गणेश पूजन किया जाता है । फिर गुरु या वेदव्यास की प्रतिमा/चित्र के सामने दीप, धूप, पुष्प, अक्षत और फल अर्पित करके गुरु मंत्र, जैसे “ॐ गुरुभ्यो नमः”, का जप किया जाता है ।
इसके बाद शास्त्र वाचन गुरु भजन, श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषद या व्यास पुराण का पाठ और भिक्षाटन के माध्यम से दान का महात्म्य किया जाता है। दान में गीता, पीला वस्त्र, गुड़-चना, पीतल या तांबा आदि शामिल किए जा सकते हैं । शाम के समय चंद्रदेव को अर्घ्य दिया जाता है और फिर गुरु को श्रद्धा-सम्मान के साथ अदाब व कामना संदेश भेजे जाते हैं ।
गुरु पूर्णिमा का आध्यात्मिक एवं सामाजिक महत्व
गुरु पूर्णिमा सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि ज्ञान, कृतज्ञता और मार्गदर्शन का पर्व है। यह दिन गुरु-शिष्य परंपरा की जड़ता और आवश्यकता को दर्शाता है ।
हालांकि यह पर्व हिंदू धर्म का स्मारक है, पर यह बौद्ध और जैन संप्रदायों द्वारा भी बड़े उल्लास से मनाया जाता है बौद्धों ने इसी दिन बुद्ध द्वारा सारनाथ में पहला उपदेश दिया था ।
गुरु पूर्णिमा के दिन क्या करें क्या न करें
करना चाहिए:
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गुरु एवं माता-पिता के चरण स्पर्श
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स्वच्छ स्नान और गणेश पूजा
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दान (गीता, फल, वस्त्र, धातु आदि)
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शास्त्र का पाठ, गुरु सत्संग
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प्रणाम और गुरु से सलाह-उपदेश
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चंद्रमा को अर्घ्य
नहीं करना चाहिए:
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गुरु की किसी भी प्रकार की उपेक्षा
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झूठ, गुस्सा, आलस्य
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अतिक्रमणकारी या तामसिक कार्य
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राहुकाल या अमहत कार्य-भोजन
दान के लाभ और राशियुक्त सुझाव
दान से न केवल आर्थिक तथा मानसिक शांति मिलती है, बल्कि जीवन में स्थायित्व भी आता है। राशियों के अनुसार दान करने से विशेष प्रभाव होता है जैसे मेष वालों के लिए तांबे का बर्तन, कर्कों के लिए चावल आदि ।
पीले वस्त्रों का दान गुरु या माता-पिता को देने से करियर में उन्नति जबकि गीता का दान करने से ज्ञानवर्धन, रोगों से मुक्ति और आंतरिक शांति मिलती है।
गुरु पूर्णिमा का संदेश आज के युग में
गुरु केवल आध्यात्मिक शिक्षक नहीं होते, वे जीवन के मार्गदर्शक, विचारक और प्रेरक भी हैं। इस दिन गुरु का सम्मान करने से ज्ञान-विवेक, सेवा भाव और कृतज्ञता, तीनों का समावेश होता है। यह हमें अज्ञानता से मुक्ति और आत्म-विश्वास देने वाला दिन होता है ।