आज से शुरू हो रहा है ज्येष्ठ मास, जानें इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

Editorial Team
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भारतवर्ष में समय को केवल कैलेंडर की तिथियों से नहीं मापा जाता, बल्कि हर मास का एक विशेष धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व होता है। ऐसा ही एक मास है ‘ज्येष्ठ मास’, जो इस वर्ष आज से आरंभ हो रहा है। यह मास न केवल आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे कई वैज्ञानिक तर्क और सामाजिक सन्देश भी छिपे हुए हैं।

ज्येष्ठ मास का परिचय

हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास वैशाख के बाद आता है और इसे गर्मी का चरम काल माना जाता है। यह समय ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलता है। यह सूर्य के मृगशिरा नक्षत्र में रहने का समय होता है, जब तापमान अपने चरम पर होता है।

धार्मिक महत्व

1. गंगा स्नान और गंगा दशहरा

ज्येष्ठ मास का प्रमुख पर्व है गंगा दशहरा, जो ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन माँ गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं। लोग इस दिन गंगा में स्नान करके पापों से मुक्ति की कामना करते हैं।

2. निर्जला एकादशी का विशेष व्रत

इस मास की निर्जला एकादशी को सबसे कठिन व्रतों में गिना जाता है। बिना जल ग्रहण किए उपवास करने से व्यक्ति को साल भर की एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है। यह आत्म-नियंत्रण और संयम का प्रतीक है।

3. हनुमान जी और सूर्य पूजा

ज्येष्ठ मास में विशेष रूप से हनुमान जी की पूजा का महत्व होता है क्योंकि यह बल और संयम का समय होता है। साथ ही, सूर्य की तपन को शांत करने हेतु सूर्य को जल अर्पण करने की परंपरा भी प्रचलित है।

वैज्ञानिक महत्व

1. गर्मी में जल संरक्षण का संदेश

ज्येष्ठ मास में अत्यधिक गर्मी होती है, जिससे जल स्रोत सूखने लगते हैं। धार्मिक रीति से जल दान और जल स्रोतों की सफाई करना हमें जल संरक्षण का वैज्ञानिक संदेश देता है।

2. शरीर की शुद्धि

इस समय शरीर में गर्मी और पित्त की अधिकता होती है। व्रत और हल्के भोजन का सेवन, पाचन और शरीर की शुद्धि में सहायक होता है। आयुर्वेद के अनुसार, यह शरीर के डिटॉक्स का समय होता है।

3. धूप और सूर्य विकिरण का प्रभाव

ज्येष्ठ मास में सूर्य की यूवी किरणें अधिक तीव्र होती हैं। सुबह सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य देना नेत्रों और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना गया है।

परंपराएं और रीति-रिवाज़

  • लोग इस मास में पानी के प्याऊ, छायादार पेड़ लगाना, जानवरों को पानी पिलाना और जल से जुड़ी सेवा करना पुण्यकारी मानते हैं।

  • ब्राह्मणों को पंखा, जल पात्र, छाता आदि गर्मी से राहत देने वाले दान देने की परंपरा है।

  • ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी लोग तालाबों की सफाई, कूप जल भराव, और पानी के सहेजने को सामाजिक कर्तव्य मानते हैं।

आज के समय में ज्येष्ठ मास का प्रासंगिक संदेश

  1. पर्यावरण संरक्षण:
    जल का दान केवल धार्मिक कार्य नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी भी है। इस मास में जल स्रोतों को बचाने की प्रेरणा मिलती है।

  2. आत्म-संयम और अनुशासन:
    निर्जला एकादशी जैसे व्रत हमें सिखाते हैं कि इच्छाओं को कैसे नियंत्रित किया जाए और संयमित जीवन कैसे जिया जाए।

  3. सेवा और करुणा:
    पक्षियों को दाना-पानी देना, पेड़ लगाना और गरीबों को शीतल जल या छांव प्रदान करना हमें दूसरों के प्रति दया और सेवा भाव की ओर प्रेरित करता है।

वेदों और पुराणों में उल्लेख

स्कंद पुराण और पद्म पुराण जैसे ग्रंथों में ज्येष्ठ मास में जलदान, तप, सेवा और संयम के महत्व का विस्तृत वर्णन है। वेदों में इस मास को ‘धैर्य और तपस्या का मास’ कहा गया है।

ज्येष्ठ मास हमें न केवल धार्मिक आस्था से जोड़ता है, बल्कि आत्मानुशासन, पर्यावरण चेतना और सेवा भाव को भी जाग्रत करता है। यह मास हमें बताता है कि अगर हम प्रकृति और समाज के साथ संतुलन में जीवन जीते हैं, तो जीवन अधिक स्वस्थ, शांत और सार्थक बन सकता है।

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