Vat Savitri Vrat 2025: कब और कैसे करें वट सावित्री व्रत , जानें शुभ मुहूर्त और विधि

Editorial Team
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26 May, 2025, गुरुवार को वट सावित्री का पर्व मनाया जायेगा। वट सावित्री पर सुहागिनें अपने पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती हैं। वट सावित्री पर वट सावित्री के वृक्ष के साथ सत्यवान और सावित्री की पूजा भी की जाती है। साथ ही ही विधि-विधान के साथ पूजा करके वट सावित्री व्रत वट वृक्ष के नीचे कथा सुनी और सुनाई जाती है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ का बहुत महत्व होता है।

वट सावित्री व्रत कथा के पौराणिक महत्व, पूजा विधि, और सावित्री-सत्यवान की अद्भुत कहानी के बारे में विस्तार से जानें। इस व्रत की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को समझें और व्रत की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें। आइए, जानते हैं वट सावित्री व्रत कथा में वट वृक्ष का क्या महत्व होता है।

हिन्दू धर्म में वट सावित्री व्रत का बहुत महत्व है. ज्येष्ठ महीने की अमावस्या केदिन वट सावित्री व्रत हर साल रखा जाता है. यह व्रत केवल सुहा​गन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए रखती हैं. यदि महिलाएं पहली बार वट सावित्री व्रत रखने वाली हैं तो वट सावित्री व्रत की पूजा के दौरान एक कथा सुननी होती है. इस कथा को सुनने से पति की लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

वट सावित्री व्रत पर अगर आप पूजा करने जा रही हैं तो पूजा का शुभ समय अभिजीत मुहूर्त 11:52 से 12:48 बजे तक रहेगा. इसके अलावा भी 2 मुहूर्त और बन रहे हैं. लाभ-उन्नति मुहूर्त दोपहर 12:20 से 02:04 बजे तक रहेगा. अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त दोपहर 02:04 से 03:49 बजे तक है

वट सावित्री व्रत कथा

स्कंदपुराण की कहानी के अनुसार सावित्री का विवाह सत्यवान के साथ हुआ था। दोनों एक-दूसरे के प्रति समर्पित थे। एक दिन सत्यवान लकड़ी काटने गए लेकिन अचानक सत्यवान की तबियत बिगड़ने लगी। जब सत्यवान घर आए, तो बेसुध होने लगे। यह देखकर सावित्री ने सत्यवान का सिर अपनी गोद में रख लिया। इतने में यमराज सत्यवान के प्राण हरने लगे। यह देखकर सावित्री ने उन्हें रोकने का प्रयास किया लेकिन यमराज यह कहकर सत्यवान के प्राण ले जाने लगे कि सत्यवान अल्पायु थे, इसलिए उनका समय आ गया है। उन्होंने सावित्री को वापस घर लौटने को कहा लेकिन सावित्री यमराज के पीछे आती रही। यह देखकर यमराज ने वापस लौटने के बदले सावित्री को तीन वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने कहा कि पहला वर है कि मेरे सास-ससुर की आंखों की रोशनी वापस आ जाए, दूसरा वर सावित्री का खोया हुआ राज्य वापस मिल जाए। तीसरा वर मांगते हुए सावित्री ने कहा कि “मैं 100 पुत्रों की मां बनना चाहती हूं।” यमराज ने अपना पीछा छुड़ाने के लिए सावित्री को तथास्तु कहा और वहां से सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे। लेकिन तभी सावित्री ने यमराज को रोकते हुए कहा कि आपका दिया वरदान पूरा कैसे होगा, जब आपने मेरे पति के प्राण ही हर लिए हैं। पतिव्रता स्त्री को देखकर यमराज ने सावित्री के पति सत्यवान के पति वापस लौटा दिए। यमराज के कहने पर सावित्री घर के पास मौजूद वट वृक्ष के पास लौटी, तो वहां पर सत्यवान के मृत शरीर में वापस प्राण आ गए।

वट वृक्ष की पूजा करने से यमराज और त्रिदेवों की मिलती है कृपा

वट सावित्री व्रत कथा बरगद के पेड़ के नीचे की जाती है। इसका कारण यह है मान्यतानुसार वट सावित्री के दिन बरगद के पेड़ पर यमराज निवास करते हैं। इससे विवाहित स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु के लिए यमराज से प्रार्थना करती है। साथ ही बरगद के पेड़ पर त्रिदेव भी निवास करते हैं। ऐसे में माना जाता है कि जिस व्यक्ति के सिर पर त्रिदेव का हाथ होता है, उसका मृत्यु भी कुछ नहीं बिगाड़ सकती है। बरगद पेड़ की छाल में भगवान विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और इसकी शाखाओं में भगवान शिव वास करते हैं।

​यमराज ने वटवृक्ष के नीचे लौटाए थे सत्यवान के प्राण

जब सावित्री के पति सत्यवान के प्राण यमराज ने हर लिए थे, तो सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण लौटाने के लिए प्रार्थना की थी। पौराणिक मान्यता है कि तब यमराज ने वट वृक्ष के नीचे ही सत्यवान के प्राण लौटाकर सत्यवती को पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया था। यमराज ने बरगद की जड़ों में सत्यवान के प्राण को जकड़कर रखा हुआ था। यमराज के प्राण लौटाए जाने के बाद से सुहाग की दीर्घायु के लिए वट वृक्ष के नीचे प्रार्थना की जाती है।

वट वृक्ष में कलावा बांधने से टल जाती है अकाल मृत्यु

वट सावित्री व्रत कथा के बाद वट वृक्ष में 7 बार कलावा लपेटकर बांधा जाता है। वट वृक्ष की 7 परिक्रमा करने को पति-पत्नी के सात जन्मों के सम्बधों से जोड़कर देखा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि बरगद के पेड़ में कलावा बांधने से अकाल मृत्यु भी टल जाती है।

वट वृक्ष की पूजा करने से शनि की पीड़ा से मिलती है मुक्ति

वट सावित्री के दिन शनि जयंती भी है। ऐसे में वट सावित्री का महत्व और भी बढ़ जाता है। वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार शनि की साढ़े साती की वजह से ही सत्यवान के प्राण शनिदेव के भाई यमराज ले गए थे, इसलिए वट सावित्री के दिन वट वृक्ष की पूजा करने से शनिदेव की वक्री दृष्टि से भी मुक्ति मिलती है। शनिदेव की कृपा पाने के लिए भी वट सावित्री पर बरगद की पूजा की जाती है।

​बरगद का पेड़ औषधीय गुणों से भरपूर होता है

बरगद के पेड़ का धार्मिक महत्व ही नहीं बल्कि बरगद का पेड़ औषधीय गुणों से भी भरपूर है। इसके पत्तों से निकलने वाले दूध को चोट, मोच या सूजन पर दिन में दो से तीन बार लगाकर मालिश करने से चोट पूरी तरह से ठीक हो जाती है। आयुर्वेद में भी बरगद के पेड़ के औषधीय गुण बताए गए हैं।

वट सावित्री व्रत की ये है पूजा विधि

  • व्रती महिलाओं को वट सावित्री व्रत के दिन पूजा का संकल्प लें.
  • फिर शुभ मुहूर्त में वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए सामग्री एकत्र करके किसी बरगद के पेड़ के पास जाएं.
  • पेड़ के नीचे ब्रह्म देव, देवी सावित्री और सत्यवान की मूर्ति को स्थापित करें. फिर उनका जल से अभिषेकर करें.
  • उसके बाद ब्रह्म देव, सत्यवान और सावित्री की पूजा करें. एक-एक करके उनको पूजा सामग्री चढ़ाएं.
  • फिर रक्षा सूत्र या कच्चा सूत लेकर उस बरगद के पेड़ की परिक्रमा 7 बार या 11 बार करते हुए उसमें लपेट दें.
  • अब आप वट सावित्री व्रत की कथा सुनें. फिर ब्रह्म देव, सावित्री और सत्यवान की आरती करें.

वट सावित्री व्रत की कथा

स्कंद पुराण के अनुसार, वट सावित्री व्रत की कथा देवी सावित्री के पतिव्रता धर्म के बारे में है. देवी सावित्री का विवाह सत्यवान से हुआ था, लेकिन उनकी अल्पायु थी. एक बार नारद जी ने इसके बारे में देवी सावित्री को बता दिया और उनकी मृत्यु का दिन भी बता दिया. सावित्री अपने पति के जीवन की रक्षा के लिए व्रत करने लगती हैं. वे अपने पति, सास और सुसर के साथ जंगल में रहती थीं. जिस दिन सत्यवान के प्राण निकलने वाले थे, उस दिन वे जंगल में लकड़ी काटने गए थे, तो उनके साथ सावित्री भी गईं थीं.

जिस दिन सत्यवान के प्राण जाने वाले थे, उस दिन सत्यवान के सिर में तेज दर्द होने लगा और वे वहीं पर बरगद के पेड़ के नीचे लेट गए. देव सावित्री ने पति के सिर को गोद में रख लिया. कुछ समय में यमराज वहां आए और सत्यवान के प्राण हरकर ले जाने लगे. उनके पीछे-पीछे सावित्री भी चल दीं. तब यमराज ने उनको समझाया कि सत्यवान अल्पायु थे, इस वजह से उनका समय आ गया था. तुम वापस घर चली जाओ. पृथ्वी पर लौट जाओ. लेकिन सावित्री नहीं मानीं. इस पर सावित्री ने कहा कि जहां मेरे पति जाएंगे. वहां तक मैं भी जाउंगी. यही सत्य है.

यमराज सावित्री की ये बात सुनकर प्रसन्न हुए और उनसे तीन वर मांगने को कहा. यमराज की बात सुनकर सावित्री ने उत्तर दिया कि मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उनकी आंखों की रोशनी लौटा दें. तब यमराज ने तथास्तु कहकर उसे जाने को कहा. लेकिन सावित्री यम के पीछे चलती रही. तब यमराज दोबारा प्रसन्न होकर वर मांगने को कहते हैं, तब सावित्री ने वर मांगा कि मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मिल जाए. इसके बाद सावित्री ने वर मांगा कि मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं

सावित्री की पति-भक्ति को देखकर यमराज अत्यंत प्रसन्न हुएं और तथास्तु कहकर वरदान दे दिया, जिसके बाद सावित्री ने कहा कि मेरे पति के प्राण तो आप लेकर जा रहे हैं तो आपके पुत्र प्राप्ति का वरदान कैसे पूरा होगा. तब यमदेव ने अंतिम वरदान देते हुए सत्यवान को पाश से मुक्त कर दिया. सावित्री वापस बरगद के पेड़ के पास लौटी. जहां सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था. कुछ देर बाद सत्यवान उठकर बैठ गया. उधर सत्यवान के माता-पिता की आंखों की रोशनी आ गई. साथ ही उनका खोया हुआ राज्य भी उन्हें वापस मिल गया

ज्येष्ठ अमावस्या तिथि के दिन यह घटना हुई थी और अपने पतिव्रता धर्म के लिए देवी सावित्री प्रसिद्ध हो गईं. उसके बाद से ज्येष्ठ अमावस्य को ज्येष्ठ देवी सावित्री की पूजा की जाने लगी. वट वृक्ष में त्रिदेव का वास होता है और सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे ही जीवनदान मिला था. इस वज​​ह से इस व्रत में वट वृक्ष, सत्यवान और देवी सावित्री की पूजा करते हैं

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