इस समय विज्ञान और पुराण दोनों ही हमें यह याद दिलाते हैं कि मानव कल्पना जितनी प्राचीन है, उतनी ही विशाल और रोमांचक है। हाल ही में एक खोज ने विज्ञान और धर्म दोनों के मध्य की सीमाओं को धुंधला कर दिया है ,अंतरिक्ष में एक विशाल जल पिंड का पता चला है। इस खोज को हम हिंदू पुराणों में वर्णित क्षितिसागर / क्षीर सागर की पौराणिक कथा से जोड़ कर देख सकते हैं।
अंतरिक्ष में पानी का विशाल भंडार
NDTV की रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों ने लगभग 12 अरब प्रकाश वर्ष दूर एक विशाल “140 ट्रिलियन सागर” (140 trillion oceans) पानी के मात्रा के बराबर जल पिंड का पता लगाया है। यह मात्रा अद्भुत है, इसका मतलब यह है कि उस क्षेत्र में इतनी मात्रा में पानी है जितनी पृथ्वी पर अधिकांश महासागरों में हो सकती है।
यह जल पिंड एक क्वाजर के आसपास मिला है। क्वाजर एक अत्यधिक ऊर्जावान आकाशीय पृष्ठभूमि पिंड है, जो गैस और धूल के बादल से घिरा होता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस जल पिंड में जल अणु (H₂O), ऑक्सीजन, हाइड्रोजन और अन्य रासायनिक तत्व हो सकते हैं, और यह ब्रह्माण्ड में जल का एक प्रमुख स्रोत हो सकता है।
इस खोज का वैज्ञानिक महत्व इस प्रकार है:
- प्रारंभिक ब्रह्माण्ड में जल की उत्पत्ति और वितरण का संकेत
- ब्रह्मांडीय जल चक्र की महत्वपूर्ण भूमिका
- खगोलीय पिंडों, ग्रहों और उपग्रहों में जीवन की संभावना
- अन्तरिक्ष के विकास तथा ज्योतिषीय रसायनिकी (astrochemistry) के लिए नई सूचनाएँ
क्षीर सागर का पौराणिक संसार
इतिहास और धर्मग्रंथों में क्षितिसागर / क्षीर सागर (जिसे कृष्ण / Kshira Sagar, अमृत सागर, सायुज्य सागर आदि नामों से भी जाना गया है) का विशेष स्थान है। इसे दुग्ध का महासागर माना गया है – जहाँ देवी-देवताओं के लिए अमृत और सुदर्शन आदि पदार्थ उत्पन्न किए जाते थे।
कथा का सार
प्रमुख कथाएँ निम्नलिखित हैं:
समुद्र मंथन
- देवों और असुरों द्वारा महा मंथन किया गया, मंथन के दौरान वासुका नाग का सहारा लेकर मणि (माउंट मेरु) के चारों ओर मंथन किया गया।
- इस मंथन के फलस्वरूप अनेक दिव्य उपादान उत्पन्न हुए , जैसे कलश, क्षीर सागर, अमृत, रत्न, विष आदि।
- कहा जाता है कि क्षितिसागर उसी अमृत आदि दिव्य पदार्थों का स्रोत था।

ksheer sagar क्षीर सागर में भगवान विष्णु का निवास
क्षीर सागर को भगवान विष्णु का विश्राम स्थल माना जाता है। वे शेषनाग पर शयन करते हुए यहीं निवास करते हैं। देवी लक्ष्मी उनके चरणों की सेवा करती हैं।
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इस रूप को क्षीरसागर शयन विष्णु कहा जाता है।
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विष्णु जी यहीं से सृष्टि का संचालन करते हैं और समय-समय पर अवतार लेकर धर्म की रक्षा करते हैं।
भगवान कृष्ण का निवास (गोवर्धन पर्वत)
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- विष्णु पुराण में वर्णन है कि गोवर्धन पर्वत को भगवान कृष्ण ने क्षीर सागर से उठाकर अपनी गोपियों-ग्वालों की रक्षा की थी।
- यहाँ “दुग्ध धाराएँ” और दुग्ध कुंड की कथा भी प्रसिद्ध है, जहाँ दूध बहता था।दिव्य पशु, मौसम और अमृत उत्पादन
- ब्राह्मण ग्रंथों में यह वर्णित है कि क्षीर सागर में दुग्ध, द्रव, गंध, अमृत आदि संयोजित होते थे।
- यहाँ से देवों के लिए अमृत उत्पन्न होता था, जो उन्हें अमरत्व प्रदान करता था।
यह इस बात का संकेत को देता है कि प्राचीन भारतीय दर्शन ने सृष्टि में ऐसे दिव्य स्रोतों और भौतिक तत्वों के बारे में बताया गया है, जिसे विज्ञान आज खोज रहा है।
विज्ञान और मिथक का संगम
जब हम वैज्ञानिक शोध, जैसे कि अंतरिक्ष में विशाल जल पिंड की खोज, और पुराणिक कल्पना, जैसे क्षीर सागर की कथाएं को मिलाते हैं, तो एक सुंदर दार्शनिक तर्क बनता है:
- विज्ञान कहता है कि ब्रह्माण्ड में विशाल जल स्रोत संभव हैं
- पुराण कहता है कि दिव्य सृष्टि स्रोतों का महासागर पहले से ही अस्तित्व में था
- दोनों दृष्टिकोण यह संकेत देते हैं कि जल जीवन, प्रकृति और ब्रह्मांडीय शक्ति का मूलाधार है
यह मिलन हमें यह याद दिलाता है कि पुरातन भारतीय विचारों में विज्ञान और आध्यात्मिकता कभी पृथक नहीं थे , मानव ने सृष्टि और जल, जीवन और ब्रह्मांड को जोड़ने की कोशिश की थी। आज विज्ञान उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है जहाँ पौराणिक कहानियाँ द्रष्टिकोण थीं।
- विज्ञान ने एक अद्भुत खोज की , अंतरिक्ष में 140 ट्रिलियन महासागरों के बराबर पानी का स्रोत।
- हिंदू पुराणों ने भाष्य किया , क्षीर सागर, दूध का महासागर, जहां दिव्य पदार्थ उत्पन्न होते थे।
- यह हमारे लिए एक प्रेरणा है , जहाँ विज्ञान आगे बढ़े, वहां पुराणिक ज्ञान हमें सांस्कृतिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक दिशा भी दे सकता है।