Ayodhya: राम मंदिर परिसर में 5 जून को 14 मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा

Editorial Team
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पांच जून 2025 को अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर परिसर में 14 नव-निर्मित देवालयों (मंदिरों) में प्राण प्रतिष्ठा का भव्य आयोजन होने जा रहा है। इस अनुष्ठान में 101 आचार्य वैदिक विधि-विधान से मंत्रोच्चार करते हुए देवताओं की मूर्तियों में प्राण-प्रतिष्ठा करेंगे।

यह आयोजन केवल धार्मिक आस्था का नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और वैज्ञानिक चेतना का भी जीवंत प्रतीक है। आइए समझते हैं इसकी पृष्ठभूमि, महत्व और जीवन में इसकी प्रासंगिकता।

प्राण प्रतिष्ठा क्या होती है?

‘प्राण प्रतिष्ठा’ एक वैदिक प्रक्रिया है जिसमें किसी मूर्ति में ‘प्राण’ यानी दिव्य ऊर्जा या चेतना का आवाहन किया जाता है। जब तक मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठित नहीं होती, वह केवल एक “शिलाखंड” मानी जाती है। लेकिन वैदिक मंत्रों, अग्निहोत्र, और आचार्यों के संकल्प के साथ जब मूर्ति में देवता की चेतना आहूत की जाती है, तब वह “पूज्य” बनती है।

राम मंदिर परिसर में बन रहे 14 देवालय

अयोध्या में अब न केवल श्रीरामलला का भव्य मंदिर है, बल्कि उनके साथ अन्य प्रमुख देवताओं — शिव, हनुमान, गणेश, दुर्गा, अन्नपूर्णा, सूर्य, विष्णु, ब्रह्मा, और अन्य वैदिक देवताओं — के लिए 14 अलग-अलग मंदिरों का निर्माण किया गया है। इन सभी में प्राण प्रतिष्ठा हेतु तैयारियां अंतिम चरण में हैं।

101 आचार्य करेंगे यह अनुष्ठान

इस विशेष अनुष्ठान में देशभर से आमंत्रित 101 विद्वान आचार्य भाग लेंगे, जो शुद्ध वैदिक पद्धति से प्राचीन ग्रंथों और यजुर्वेद, सामवेद के निर्देशों के अनुसार प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न कराएंगे।

यह समवेत अनुष्ठान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि यह वैदिक संस्कृति की एकात्मता और विविधता का भी प्रतीक है।

धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

राम मंदिर और उसके परिसर में स्थित ये 14 मंदिर हिंदू धर्म के धार्मिक समरसता और संपूर्ण देवी-देवताओं की आराधना के भाव को दर्शाते हैं। यह एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण है जिसमें भारत की सनातन परंपरा को पुनः जीवित किया जा रहा है।

  • श्रीराम मंदिर में एक साथ कई देवालयों की स्थापना यह सिद्ध करती है कि सनातन धर्म में सर्वदेवोपासना की परंपरा रही है।

  • प्रत्येक देवालय एक विशिष्ट ऊर्जा केंद्र की तरह कार्य करेगा।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्राण प्रतिष्ठा

भले ही प्राण प्रतिष्ठा एक धार्मिक अनुष्ठान हो, परंतु आधुनिक विज्ञान इसे “intent-based energy transformation” की दृष्टि से देखता है। जब बड़ी संख्या में लोग एक ही उद्देश्य और भावना से एकत्र होकर उच्च ऊर्जा (जैसे मंत्रोच्चार, ध्यान और अग्निहोत्र) उत्पन्न करते हैं, तो उस स्थान का कंपन (vibrational frequency) भी बदलता है।

  • यह ऊर्जा क्षेत्र (energy field) मानसिक और भावनात्मक शांति में सहायक हो सकता है।

  • कई शोध बताते हैं कि सामूहिक प्रार्थना और ध्यान से वातावरण शुद्ध होता है

अयोध्या का नव स्वरूप: संस्कृति, आस्था और पर्यटन का संगम

राम मंदिर का निर्माण न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर, पर्यटन, और आर्थिक विकास के लिए भी मील का पत्थर है।

  • अनुमान है कि प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या में श्रद्धालुओं और पर्यटकों की संख्या में भारी वृद्धि होगी।

  • इससे स्थानीय व्यापार, रोजगार, और सांस्कृतिक आयोजनों को भी बढ़ावा मिलेगा।

जीवन के लिए सीख: प्राण प्रतिष्ठा केवल मूर्ति में नहीं, जीवन में भी

प्राण प्रतिष्ठा केवल किसी मूर्ति में चेतना भरने का प्रतीक नहीं है। यह हमें यह भी सिखाती है कि जीवन को सार्थक बनाने के लिए उसमें उद्देश्य, भावना और सकारात्मक ऊर्जा भरना आवश्यक है। ठीक वैसे ही जैसे:

  • मनुष्य का जीवन भी तब तक “शरीर मात्र” है जब तक उसमें उद्देश्य (धर्म), कर्म और सेवा का भाव न हो।

  • आत्मा की चेतना जागृत हो, यही वास्तविक ‘जीवन प्रतिष्ठा’ है।

राम मंदिर परिसर में 14 देवालयों की प्राण प्रतिष्ठा एक ऐतिहासिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक यज्ञ है जो न केवल भारत, बल्कि वैश्विक हिंदू समुदाय के लिए गौरव का विषय है। यह आयोजन वैदिक विज्ञान, परंपरा और आधुनिकता के समन्वय का उदाहरण है।

आज जब पूरा देश इस पुनर्जागरण का साक्षी बन रहा है, तो हमें भी यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने जीवन में भी प्राण प्रतिष्ठा के भाव को आत्मसात करें — ताकि जीवन भी दिव्यता से भर सके।

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