रात गहरी थी। आकाश में चाँद ठहरा हुआ था जैसे किसी रहस्य का साक्षी हो। राजा ने भय और जिज्ञासा से कहा – “गुरुदेव, मृत्यु के बाद क्या होता है?”
वह प्रश्न था जो हर युग में इंसान के मन में गूंजता रहा है।
तभी ऋषि ने मुस्कुराते हुए कहा – “यह सवाल तुम्हारे मन का नहीं, आत्मा का है। और इसका उत्तर केवल गरुड़ पुराण में है — वह ग्रंथ जो जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के रहस्यों को उजागर करता है।”
आत्मा का रहस्य – वह जो मरती नहीं
गरुड़ पुराण बताता है कि जब शरीर नष्ट होता है, तो आत्मा अपनी यात्रा शुरू करती है। यह वही आत्मा है जो न जन्म लेती है, न मरती है।
वह केवल वस्त्र बदलती है, जैसे मनुष्य पुराने कपड़े छोड़कर नए पहनता है।
यह विचार भगवद गीता से जुड़ा है, जहाँ भगवान कृष्ण कहते हैं – आत्मा अविनाशी है, शाश्वत है, और अनंत है।
परंतु गरुड़ पुराण उस यात्रा को और गहराई से समझाता है।
जब प्राण शरीर से निकलता है, तब एक नई दुनिया का द्वार खुलता है। यमदूत आते हैं – कोई कोमल, कोई कठोर। वे आत्मा को उसके कर्मों के अनुसार मार्ग दिखाते हैं।
जो जीवन में सत्य, दया और धर्म के मार्ग पर चलता है, उसकी आत्मा प्रकाश से भरे पथ पर जाती है।
और जो छल, हिंसा और लोभ में जीता है, वह अंधकारमय मार्ग पर उतरता है।
यमलोक की यात्रा – कर्म का न्याय
गरुड़ पुराण मृत्यु के बाद की दुनिया को केवल डर से नहीं, बल्कि न्याय से जोड़ता है।
वहाँ कोई ईश्वर डंडा नहीं चलाता, बल्कि आत्मा को अपने ही कर्मों का प्रतिबिंब दिखाई देता है।
जैसे कोई दर्पण हो, जिसमें जीवन के सारे कर्म एक-एक कर उभर आते हैं।
आत्मा यमलोक पहुंचती है, जहाँ यमराज उसके कर्मों का लेखा पढ़ते हैं।
वहाँ कोई पक्षपात नहीं। कोई जाति या पद का फर्क नहीं।
केवल कर्म ही आत्मा का परिचय होता है।
गरुड़ पुराण कहता है – “यमराज न दंड देते हैं, वे केवल सत्य दिखाते हैं।”
यह सत्य इतना गहरा होता है कि आत्मा स्वयं अपने निर्णय पर सहमत हो जाती है – उसे पुनर्जन्म चाहिए या मुक्ति।
पुनर्जन्म – अधूरी यात्रा का अगला अध्याय
कहते हैं आत्मा वहीँ लौटती है, जहाँ उसका अधूरा कर्म बाकी रह गया हो।
यदि किसी ने जीवन में प्रेम दिया पर घृणा भी बोई, तो आत्मा फिर लौटती है उस अधूरे प्रेम को पूर्ण करने।
कभी वह मां बनकर लौटती है, कभी पुत्र बनकर, कभी मित्र बनकर – बस संतुलन बनाने।
यह प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक आत्मा अपनी पूर्णता को न पा ले।
गरुड़ पुराण इसे संसार चक्र कहता है – जन्म और मृत्यु का अंतहीन प्रवाह।
केवल ज्ञान, करुणा और भक्ति से यह चक्र टूटता है।
जब आत्मा यह समझ जाती है कि वह शरीर नहीं, केवल चेतना है, तभी मुक्ति मिलती है – मोक्ष।
विष्णु और गरुड़ का संवाद – अमर ज्ञान
गरुड़ पुराण का हृदय उस संवाद में बसता है, जहाँ भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ को यह ज्ञान देते हैं।
गरुड़ पूछते हैं – “प्रभु, मृत्यु क्यों है?”
विष्णु कहते हैं – “मृत्यु अंत नहीं, परिवर्तन है। यह सृष्टि का नियम है। जो जन्म लेता है, वह बदलता है। और जो बदलता है, वही शाश्वत होता है।”
विष्णु बताते हैं कि मृत्यु केवल शरीर की है, आत्मा तो स्वयं परमात्मा का अंश है।
वह लौटती है उसी सागर में – क्षीरसागर में – जहाँ भगवान स्वयं विश्राम करते हैं।
हर आत्मा अंततः उसी ज्योति में विलीन हो जाती है, जिससे वह आई थी।
आधुनिक दृष्टि में गरुड़ पुराण का महत्व
आज विज्ञान भी मानता है कि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती, केवल रूप बदलती है।
यही सिद्धांत गरुड़ पुराण में हजारों वर्ष पहले लिखा गया था – आत्मा ऊर्जा है, और उसका परिवर्तन ही पुनर्जन्म है।
कई वैज्ञानिक शोध और Near-Death Experiences इस बात की पुष्टि करते हैं कि चेतना शरीर से अलग अस्तित्व रखती है।
इसलिए गरुड़ पुराण केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि चेतना और ऊर्जा का आध्यात्मिक विज्ञान है।
यह सिखाता है कि मृत्यु से डरना नहीं चाहिए, क्योंकि वह अंत नहीं – एक नई शुरुआत है।
गरुड़ पुराण हमें याद दिलाता है कि हर कर्म, हर विचार और हर भावना आत्मा के अगले सफर को तय करती है।
इसलिए जीवन को सत्य, दया और करुणा से भर देना ही सबसे बड़ी पूजा है।
क्योंकि जब शरीर मिटता है, तो आत्मा वही साथ ले जाती है – अपने कर्म।
जैसे भगवान विष्णु कहते हैं –
“जो अपने भीतर की ज्योति को पहचान लेता है, वह मृत्यु के पार देखता है।”
